अगर पृथ्वी बृहस्पति से टकरा जाए तो क्या होगा ?

नमस्कार दोस्तों मैं इस आर्टिकल में आपको बताने वाला हूँ कि अगर हमारी पृथ्वी, बृहस्पति टकरा जाए तो क्या होगा ? आप मान लीजिये कि हमारी पृथ्वी पिछले 242 दिनों से तेजी से बृहस्पति की ओर बढ़ रही है और अब इसका असर दिखने वाला है। अब हम एक विशाल ग्रह के इतना करीब है कि हमारे आसमान में छाई इकलौती चीज ये ग्रह ही है।

पृथ्वी की सतह पर तापमान का बढ़ना काबू से बाहर हो रहा है। हमारा वातावरण लपटों में चल रहा है और वैज्ञानिक किसी तरह से इसका जवाब ढूंढने में लगे हुए हैं। क्या होगा जब यह दो ग्रह आपस में टकराएंगे। क्या ऐसी कोई संभावना है कि हम गैस से बने इस ग्रह से गुजर सकेंगे? और कैसे यह टकराव वृहस्पति को हमेशा के लिए बदल देगा। जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत पढ़े

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एक तरीका है जिससे वैज्ञानिक कुछ जवाब ढूढ़ सकेंगे। और वह है गुजरे हुए कल को देखना, क्योंकि यह पहली बार नहीं होगा। जब वृहस्पति का टकराव किसी दूसरे ग्रह से होगा। करीब 4.5 अरब साल पहले बृहस्पति का पृथ्वी से 10 गुना ज्यादा वजनदार एक ग्रह के साथ तेज टकराव हुआ था। उस वक्त इस टकराव ने बृहस्पतिवार के कोर को  पूरी तरह से बदल दिया था। पर उस दूसरे ग्रह का क्या हुआ था? और इससे गैस के इस गोले से टकराने के बाद हमारे ग्रह के बच पाने की संभावना के बारे में क्या पता चलता है।

कुछ जवाब पाने के लिए 4.5 अरब साल पहले चलते हैं। जब वृहस्पति केवल एक नया ग्रह था जो ब्रह्माण्ड में अपनी जगह ढूंढने की कोशिश कर रहा था। उस वक्त, बृहस्पति का गुरुत्वीय खिंचाव दस लाख सालों के केवल एक हिस्से में ही 30 गुना ज्यादा ताकतवर हो गया था। इससे आसपास के नवजात ग्रहों के ऑर्बिट्स गड़बड़ा गए थे और इनमें से कुछ बृहस्पति में ही समां गए थे।

माना जाता है कि ऐसे एक ग्रह का वजन पृथ्वी के मुकाबले 10 गुना ज्यादा था और यह मुख्य रूप से एक सिलिकेट बर्फीला कोर था। ये 46 किलोमीटर प्रति सेकंड (29 मिल प्रति सेकेण्ड) की प्रभाव की गति यानि इंपैक्ट स्पीड से बृहस्पति से टकराया। इस टकराव से वृहस्पति के वज़न के केवल कुछ हिस्से पर ही असर पड़ा लेकिन इसका असल कोर पूरी तरह से बदल गया।

इस इंटेक्स के पहले, बृहस्पति का घना केंद्रीय कोर भारी तत्वों से भरा था और ग्रह का बाकी का हिस्सा हाइड्रोजन और हीलियम का बना था। इस इंटेक्स के बाद उस नवजात ग्रह का सिलिकेट बर्फीला कोर बृहस्पति के कोर के साथ मिल गया जिससे बृहस्पतिवार का कोर पतला हो गया। भारी तत्व बिखर गए और बृहस्पति की बाहरी परतो के साथ मिलने लगे।

जहां ये टकराव बृहस्पति के लिए एक अहम बदलाव था। वही उस दूसरे ग्रह के लिए यह सफर का अंत था तो, क्या संभावना है कि पृथ्वी की किस्मत इससे कुछ अलग होगी। चलिए जान लेते हैं। पृथ्वी 29.78 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से सूरज के चक्कर लगाती है। इस रफ्तार से, अगर पृथ्वी को सूरज के ऑर्बिट को छोड़कर अलग जाना हो और बृहस्पति की ओर बढ़ना हो तो इसे वहां पहुंचने में 242 दिनों का वक्त लगेगा।

हमारे इस पूरे सफर में बृहस्पति एक रोशन सितारे की तरह चमक रहा होगा। हर दिन और घंटे के साथ बड़ा होता जा रहा होगा। छठे दिन तक, बृहस्पति हमारे चांद जितना चमकदार होगा। जल्दी ही हम पाएंगे कि हमारी दिन की रोशनी कम होती जा रही है। जब हम मंगल के ऑर्बिट में पहुंचेंगे तब हमें हमारी औसत रोशनी का केवल 50 फ़ीसदी मिल रहा होगा।

हमारे लिए अच्छी बात यह है कि पृथ्वी का वातावरण एक बफर की तरह काम करेगा तो हमें तुरंत ठंड महसूस नहीं होगी। पर ये केवल कुछ ही वक्त चलेगा तो आपको ठंड के लिए कुछ बेहद टिकाऊ समानो में निवेश करना होगा। इसे ऐसे समझ लीजिए कि मंगल का तापमान -63 डिग्री सेल्सियस (-145 फारेनहाइट) है तो कह सकते हैं कि हमें इसका ही इंतजार करना होगा।

एक बार हम मंगल के ऑर्बिट से तेज गति से निकल जाएं। इसके बाद हम एस्ट्रॉइड की बेल्ट से भी गुजर जाएंगे। हमें मेटियोराइट यानी उल्कापिंड की खूबसूरत बारिश आसमान को रोशन करती दिखेगी। पर हमें दूसरे मेटियोराइट से टकराने का खतरा भी होगा तो चलना जारी रखते हैं। अपने सौरमंडल के 242 दिन के सफ़र के बाद हम आखिरकार अपनी मंजिल: बृहस्पति तक पहुंचेंगे। जैसे-जैसे पृथ्वी बृहस्पति में खींच रही होगी। हमारी ग्रह की वेलोसिटी तब तक बढ़ती रहेगी जब तक ये 60 किलोमीटर प्रति सेकंड (37 मिल प्रति सेकंड) तक ना पहुंच जाए। 

यानी विमानों के उड़ने की गति से 250 गुना ज़्यादा तेज़ तो आप को मजबूती से बने रहना होगा। अरे हां, क्या हमने आपको ये बताया कि बृहस्पति के 79 चांद हर वक्त इसके चक्कर लगा रहे होते हैं? तो इस बात का गंभीर खतरा है कि हम इनमें से किसी के साथ ही टकरा सकते हैं क्योंकि पृथ्वी इनके नज़दीक खींच रही होगी। और अगर हम इन सारे चांदो से बच भी बातें हैं तो भी चीजें बिगड़ती ही जाएंगी। जैसे जैसे हमारा टकराव बृहस्पति से होगा।

दोनों का वातावरण दब जाएगा जिससे तापमान तेजी से बढ़ेगा और इसका मतलब होगा। हवा में आग लगना पर कम से कम हमें बृहस्पति के कोर के साथ टकराव की चिंता नहीं होगी क्योंकि हम वहां तक कभी पहुंचेंगे ही नहीं, हमारा बहुत छोटा है और ऐसा कुछ होने के पहले ये बातावरण में ही जल जाएगा। पर बृहस्पति पर इसका बड़ा असर होगा।

क्योंकि पृथ्वी के अवशेष पूरी तरह से वातावरण में मिल जाएंगे तो अगर हम कभी ये देखते हैं कि हमारा ग्रह भटक रहा है और बृहस्पति की ओर बढ़ रहा है तो शायद आपको रास्ते में ही उससे कूदने की कोशिश करनी चाहिए। शायद तब, जब हम मंगल से गुजर रहे हों। क्या आप वहां जाने वाले पहले शख्स बनना चाहेंगे? अगर हा तो आपको मंगल ग्रह पर कैसा महसूस होगा यह जानने के लिए इस ब्लॉग को फॉलो करें

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