Why Online Grocery Startups are Failing in India? BigBasket | Blinkit | Dunzo

Grocery यानी किराना हम सभी के बेसिक नीड्स में से एक है, लेकिन इसके बावजूद Grocery Startups Bankrupt क्यों हो रहे हैं? अकेले 2021 में ही भारतीय लोगों ने करीब 44 हजार करोड़ रुपए की Grocery खरीदी थी, लेकिन इसके बावजूद देश भर में 400 से ज्यादा ऑनलाइन Grocery Startups बंद हो गए। यहां तक कि Swiggy जैसी बड़ी कंपनी ने भी अपनी सुपर डेली सर्विस को बेंगलुरु के अलावा और सभी जगहों पर बंद कर दिया है। 

साथ ही Blinkit, Bigbasket, Dunzo, और Zepto जैसे जो ऑनलाइन Groceries Store’s इस टाइम मार्केट में ऑपरेट भी कर रहे हैं, वे सभी भी बड़े लॉस में सरवाइव किए हुए हैं। तो आखिर सवाल यह है इतने नुकसान में होने के बावजूद आज भी ऑनलाइन Groceries Startups की लाइन क्यों लगी हुई है, और क्यों रतन टाटा और मुकेश अंबानी जैसे दिग्गज इस इंडस्ट्री में लगातार इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं?


वेल इंडियन Groceries Startups लगातार फेल क्यों हो रहे हैं? इस रीज़न को जानने के लिए सबसे पहले हमें इनके बिजनेस मॉडल को समझना होगा। अब दोस्तों जब भी आप किसी ऑनलाइन Grocery स्टोर जैसे Zepto, Blinkit या Dunzo जैसे Apps के थ्रू आर्डर करते हैं, तब ये आर्डर सबसे पहले आपकी लोकेशन के नियरेस्ट डार्कस्टोर पर जाता है।
 
यह डार्कस्टोर Actually कंपनी की Inventory होती है, जिनके लोकेशन आमतौर पर कस्टमर के घर से मैक्सिमम 4 से 5 किलोमीटर के अंदर अंदर होती है। इन Store’s को खासतौर से सिर्फ ऑनलाइन आर्डर रिसीव करने के लिए बनाया जाता है, जिसके चलते कोई भी कस्टमर इन स्टोर में खुद जाकर कुछ भी नहीं खरीद सकता। 

डार्कस्टोर में मौजूद एडवांस सर्वर सभी आने वाले ऑर्डर्स को मैनेज करते हैं और जैसे ही सर्वर को कोई आर्डर रिसीव होता है। तो वह प्रोडक्ट पैक करके तुरंत सबसे नजदीकी मौजूद डिलीवरी पर्सन को दे दिया जाता है। और इस तरह से वह डिलीवरी ब्वॉय सिर्फ 10 से 15 मिनट के अंदर ऑर्डर को कस्टमर तक पहुंचा देता है। 

आमतौर पर एक डार्कस्टोर में 15 से 20 लोगों की एक टीम काम करती है, जो कि पूरा प्रोसेस देखती है। जब भी कोई आर्डर प्लेस होता है तो डार्कस्टोर का सिस्टम ऑटोमेटेकली उसे पैक करने के इंस्ट्रक्शन भेज देता है। और फिर जो भी डिलीवरी पर्सन उसे रिसीव करने आता है। सिस्टम उसे स्टोर से लेकर कस्टमर के घर तक का सबसे आसान रोड भी सेंड कर देता है।


वैसे अगर हम ऑनलाइन Grocery बिजनेस के स्टार्ट होने की बात करें? तो सबसे पहले इस बिजनेस मॉडल की शुरुआत साल 2000 में British retail John Tesco ने की थी। और फिर उसके बाद अमेरिका में Walmart और Jcpenney ने इस मॉडल को अपनाया। और फिर बाद में इंडिया के अंदर 2018 में इस बिजनेस को कॉपी किया गया। और यहां पर सबसे पहले Bigbasket की शुरुआत हुई जो, कि अभी भी मार्केट के लीडिंग ऑनलाइन Groceries Store’s में से एक है। 

लेकिन फिर सवाल तो यही आता है कि इंटरनेट का Influence इतना बढ़ जाने के बाद भी, इंडियन ऑनलाइन Groceries Store’s प्रॉफिट क्यों नहीं कमा पा रही है? actually ऐसा होने के पीछे जो रिजंस हैं ना उसे हमने पांच अलग-अलग पॉइंट्स में बांटा है, तो चलिए एक एक करके उन सभी रीजंस के बारे में जानते हैं।

रीजन नंबर वन फ्रेंडली रिलेशन! 

अब जैसा कि आप जानते ही हैं कि इंडिया में किराने की दुकानों का एक बहुत बड़ा नेटवर्क है। हर सिटी या गली मोहल्ले में हमारे फुट स्टेप पर कोई ना कोई दुकान तो मौजूद ही है। और ऑनलाइन स्टोर की जगह पर हम अपनी रोज की जरूरतों का सामान इन्हीं दुकानों से खरीदना बेहतर समझते हैं। और इसका सबसे बड़ा रीजन है, दुकान से हमारा फ्रेंडली रिलेशन होना। Actually एक अच्छा दुकानदार अपने सभी ग्राहकों के साथ में दोस्ती बना कर रहता है। 


साथ ही समय-समय पर वह हमें बढ़िया डिस्काउंट भी दे देता है। जिसके चलते हम लोग सामान लेने के लिए बार-बार उसी के पास जाना ही पसंद करते हैं। और क्योंकि यह दुकान हमारे मोहल्ले में ही होती है। इसलिए सामान खरीदने के बहाने लोग एक दूसरे से बातचीत भी कर लेते हैं। और यह हम भारतीय लोगों का नेचर भी है कि हम Groceries आइटम के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भरोसा नहीं करते। स्पेशली अनाज और कपड़े जैसी चीजें लोग अपने हाथ में लेकर फील करने के बाद ही खरीदते हैं।

रीजन नंबर दो आर्डर वैल्यू! 

अब अमेरिका जैसे देशों में लोग औसतन 15 दिन की Grocery एक साथ खरीद लेते हैं, जिसके चलते उनके एक Grocery आर्डर की वैल्यू करीब 10 से ₹15 हज़ार तक होती है। जबकि भारत एक ऐसा देश है जहां ज्यादातर लोग एक बार में औसतन सिर्फ 500 से ₹800 तक की वैल्यू का ही सामान खरीदते हैं। ऐसे में ऑर्डर वैल्यू कम होने की वजह से ऑनलाइन Groceries Store's का मार्जिन काफी कम हो जाता है। Suppose Groceries Store's का मार्जिन अगर 15% भी हो तो ऐसे में अगर कोई ग्राहक ₹500 का आर्डर करता है तो उसमें 15% के हिसाब से कंपनी का ग्रॉस प्रॉफिट सिर्फ़ ₹75 होता है।

अब इस ₹75 में ही कंपनी को डिलीवरी चार्ज, कस्टमर केयर की सैलरी, वर्किंग एंप्लाइज की सैलरी, एडवरटाइजिंग चार्ज सब कुछ कवर करना पड़ता है। और सारे खर्चे निकालकर अगर कुछ बचता है तो वही कंपनी का नेट प्रॉफिट होता है। लेकिन आप खुद ही सोच लीजिए कि इतना सब कुछ निकल जाने के बाद से कंपनी के पास में बचता ही क्या होगा? और यही वजह है कि इंडिया में ऑनलाइन Groceries Startups प्रॉफिटेबल नहीं बन पा रहे हैं।

रीजन नंबर 3 डिलीवरी रिलेटेड प्रॉब्लम्स! 

अब पैकेट डिलीवरी का काम करने वाले लड़के बहुत जल्दी जॉब स्विच कर देते हैं। और ऐसा देखा गया है कि हर 100 में से 20 डिलीवरी बॉयज पहले ही महीने जॉब छोड़ कर चले जाते हैं। अब इससे दिक्कत यह होती है कि नए आने वाले लड़के अपने काम में तेजी नहीं दिखा पाते क्योंकि उन्हें पूरा सिस्टम समझने और डिलीवरी रोड्स को याद करने में टाइम लगता है। 


इस तरह से यह नए लड़के कम ऑर्डर की डिलीवरी कर पाते हैं, और इससे कंपनी की ऑपरेशन कॉस्ट भी काफी बढ़ जाती है। साथ ही नए लड़कों के कई बार लेट होने की वजह से कंपनी के भी रिपुटेशन पर काफी फर्क पड़ता है। इसके अलावा गलत ऑर्डर एलोकेट हो जाना, टेक्निकल प्रॉब्लम्स, डिलीवरी रिजेक्शन जैसी और भी बहुत सारे प्रॉब्लम्स के चलते डिलीवरी चार्जेस जो हमें ₹50 दिख रही होती हैं, वो कंपनी के लिए ₹100 तक पहुंच जाती हैं। क्योंकि सामान घर पहुंचे या ना पहुंचे लेकिन जो बंदा सामान लेकर गया है, उसे तो उसकी मजदूरी चाहिए ही ना।

रीजन नंबर फॉर इंडियन माइंड सेट! 

अब यह हम सभी भारतीय लोगों का माइंडसेट है कि हम बिना डिस्काउंट के कभी भी शॉपिंग नहीं करते। हम तो वह लोग हैं जो कि ₹20 की सब्जी पर भी फ्री का धनिया नहीं छोड़ते। यानी groceries पर तो हमें डिस्काउंट हर हाल में चाहिए होता है।अब ऐसे में ऑनलाइन कंपनियों के लिए दिक्कत यह हो जाती है कि वह अगर डिस्काउंट दे तो उन्हें खुद कुछ नहीं बचता, और अगर डिस्काउंट ना दे तो आर्डर आने बंद हो जाते हैं। 

यहां तक कि पहले आर्डर के लिए जब ऑनलाइन स्टोर कुछ डिस्काउंट देते हैं तो फिर एक आर्डर करने के बाद से लोग उस नंबर से दोबारा आर्डर ही नहीं करते, और दोबारा आर्डर करने के लिए अपनी फैमिली मेंबर के ही किसी नए नंबर का यूज कर लेते हैं।

रीजन नंबर 5 Too Much Marketing Cost

ज्यादातर ऑनलाइन Groceries Seller's अपनी सेल बढ़ाने के लिए एडवर्टाइजमेंट पर पानी की तरह पैसा बहाते हैं। अब नो डाउट उससे उनकी सेल तो जरूर बूस्ट हो जाती है। लेकिन इस मार्केटिंग में उनका अच्छा खासा पैसा खर्च हो जाता है। इस तरह से उनके द्वारा कमाया गया थोड़ा बहुत प्रॉफिट भी यह मार्केटिंग कॉस्ट जोड़ने के बाद से लॉस में बदल जाता है। अब आपने शायद गौर किया होगा कि Bigbasket और Blinkit के कितने सारे एड्स आते हैं।

 
Blinkit ने तो 2020 और 2021 के फाइनेंसियल ईयर में कुल 300 करोड़ से भी ज्यादा सिर्फ अपने एडवर्टाइजमेंट पर खर्च किया। और अगर हम उनके पूरे लॉस को कैलकुलेट करें तो फिर 20% सिर्फ उनके एडवर्टाइजमेंट का ही खर्चा है। मतलब कि ₹100 का अगर लॉस है तो उसमें ₹20 उनके एडवरटाइजमेंट कास्ट की वजह से है, लेकिन अभी भी लास्ट में सवाल तो यही रह जाता है।

कि अगर भारत की ऑनलाइन Groceries बिजनेस में इतनी सारी प्रॉब्लम है, तो फिर रतन टाटा और मुकेश अंबानी जैसे बड़े और समझदार बिजनेसमैन इसमें आखिर इन्वेस्ट क्यों कर रहे हैं?
असल में दोस्तों एक बड़ा बिजनेसमैन प्रेजेंट ही नहीं बल्कि हमेशा फ्यूचर का फायदा सोच कर चलता है, और उसी के हिसाब से अपने पैसों को सही जगह इंवेस्ट करता है। रतन टाटा और मुकेश अंबानी भी बखूबी जानते हैं कि ऑनलाइन Grocery बिजनेस आने वाले समय में भारत के सबसे ज्यादा प्रॉफिटेबल बिजनेस में से एक बनने वाले हैं। 

Actually भारत एक बहुत बड़ी रिटेल मार्केट है और ऑनलाइन Grocery एक ऐसा रिटेल बिजनेस है, जिसमें लोग एक बार चीजें खत्म होने के बाद से उसे बार बार जरूर खरीदते हैं। ऐसे में बस लोगों की मानसिकता बदलने की देर है क्योंकि एक बार अगर लोग ऑनलाइन Grocery शॉपिंग पर भरोसा करने लगे तो फिर इस इंडस्ट्री को गोल्डमाइन बनते देर नहीं लगेगी। और इस बात को इन्वेस्टर्स बखूबी जानते हैं कि आने वाला समय पूरी तरह से इंटरनेट पर ही बेस्ड होगा। और ऑनलाइन Grocery स्टोर आज नहीं तो कल चलेंगे ही चलेंग।

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