Dark Future of Indian Telecom Industry | Crisis of Airtel, Vi and BSNL

भारत आज दुनिया की सेकंड लार्जेश्ट टेलीकम्युनिकेशन मार्केट है जहाँ इंटरनेट कनेक्शंस 851 मिलियन के करीब पहुँच चुका हैं Trai की अकॉर्डिंग जियो के लॉन्च होने से पहले हर इंडियन कस्टमर एक महिने में 154MB डेटा का यूज करता था जो अब सौ गुना ज्यादा बढ़कर 15 .8GB पर मंथ हो गया है इस कंजप्शन का मेजर रीजन है सस्ता इंटरनेट 2015 के बाद इंटरनेट प्राइस में आई गिरावट ने हम सबको हैरान कर दिया था लेकिन 2021 से आप सब ने नोटिस किया होगा कि रिचार्ज पैक की कीमतें बढ़ रही है इस समय इंडियन टेलीकम्युनिकेशन कंपनीज जिस बुरे दौर से गुजर रही है वह हर किसी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है और हो सकता है कि आपको इंटरनेट यूज करने के लिए अब एक बड़ा अमाउंट चुकाना पड़े। लेकिन इसके पीछे का रीजन क्या है और कैसे गवर्नमेंट की कुछ पॉल्सीस हम यूजर के लिए एक खतरा साबित हो सकती है आईये इस लेख में जानने की कोशिश करते हैं।

Dark Future of Indian Telecom Industry | Crisis of Airtel, Vi and BSNL

दोस्तों ऐसा अष्टिमेट किया गया है कि साल 2030 तक इंडिया में इंटेनेट यूजर की संख्या 1.3 बिलियन को क्रॉस कर जाएगी लेकिन फिलहाल इस नम्बर को छूना इतना आसान नहीं लग रहा क्योंकि पिछले कुछ सालों में जितनी तेजी से इस सेक्टर में ग्रोथ होई थी अब उस पर ब्रेक लगता नजरा रहा है और इसकी वजह है टेलीकम्युनिकेशन कंपनीज की खस्ता हालत जो पूरी तरह कर्ज में डूबी हुई है इस कर्ज की वजह से आज भारत की टेलीकॉम कंपनीज Interest में आ चूकी हैं लेकिन यह हुआ कैसे इसको समझने के लिए सबसे पहले हमारा ये जानना जरूरी है कि अगर हम फोन या इंटरनेट के जरिए कॉल या मैसेज करते हैं, तो इसका पूरा प्रोसेस कैसे होता है? यह टेक्नोलॉजी किस तरह से काम करती है।

दोस्तों आज से करीब 20 साल पहले जब हमें किसी से बात करनी होती थी, तो हम टेलीफोन का यूज़ करते थे। जिसके प्रोसेस में तब एक टेलीफोन से दूसरे टेलीफोन के बीच एक वायर बिछा होता था। लेकिन आज यह सारा प्रोसेस वायरलेस हो चुका है। बस हमें अपने फोन में नंबर को सिलेक्ट करके, कॉल पर क्लिक करना है। जिसके बाद एक इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल आपके फोन में मौजूद एंटीना तक पहुंचता है, और यह एंटीना इस सिग्नल को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेब में कन्वर्ट देता है।

इसके बाद यह इलेक्ट्रॉनिक मैग्नेटिक वेब फोन के नजदीकी टावर के पास जाती है। बट उस टावर के पास कोई इंफॉर्मेशन ना होने से यह कॉल रिसीवर का पता नहीं लगा सकती। इसलिए हर सिटी के अंदर एक मोबाइल स्विचिंग सेंटर यानी कि MSC लगाया जाता है। MSC के पास सभी सब्सक्राइबर्स की जानकारी मौजूद होती है। और यह जानकारी MSC पर तभी स्टोर कर दी जाती है, जब आप सिम कार्ड परचेज करते हैं। इसके बाद MSC नजदीकी टावर की मदद से रिसीवर को कॉल का सीक्वेंस देता है। और इस तरह हमारी कॉल कंप्लीट होती है।और सबसे हैरान करने वाली बात यह है, कि यह सारा प्रोसेस बस कुछ सेकंड का है।

अब बात करें इंटरनेट की तो ये भी काफी हद तक ऐसे ही काम करता है। लेकिन इसमें सिग्नल हवा में नहीं बल्की ऑप्टिकल फाईबर केबल के जरिए ट्रैवल करते हैं। ये ऑप्टिकल फाइबर एक जाल की तरह पूरी दुनियां में समुद्र के अंदर फैली हुई है। इन फाईबर्स के अंदर हमारे बाल जैसे बहुती पतले -पतले तार होते हैं। असल में ये सिग्नल्स ऑप्टिकल फाइबर के जरिए डेटा सेंटर में जाते हैं। और वही पर स्टोर की गए इंफॉर्मेशन को लेकर सेलफोन टावर तक आते हैं। जहां से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव रिलिज होकर हमारे मोबाइल के एंटीना तक पहुंचती हैं। और एंटीना उस इंफॉर्मेशन को कैच करके हमें इंफॉर्मेशन देता हैं। दोस्तों आप सभी ने सुना होगा कि टेलिकॉम कंपनीज इस काम के लिए स्पेक्ट्रम का यूज करती हैं, लेकिन ये स्पेक्ट्रम होता क्या है? आईये समझने की कोशिश करते हैं।


अगर हम सीधी भाषा में बात करें तो हवा में जो Radio Wave ट्रैवल करती हैं, उसी को ही स्पेक्ट्रम कहा जाता है। स्पेक्ट्रम कहीं अलग -अलग बैंड में डीवाइड होते हैं। और हर बैंड का अपना अलग -अलग रोल होता हैं। जैसे कि जब आप कॉल पर बात कर रहे होते हैं, तो कोई बैंड आपकी वॉयस को कैरी करके रीसीवर तक पहुंचता है तो कोई मैसेज या वीडियो को सेंड करता है। इससे वो कॉल किसी दुसरे पर्सन के साथ मर्ज नहीं होती आइ होप इसे आपको अंदाजा लग गया होगा कि टेलिकॉम कंपनीज के लिए ये स्पेक्ट्रम इतना जरूरी क्यों है। लेकिन यही स्पेक्ट्रम इन कंपनीज के बीच सबसे बड़े कलेश का रीजन भी है।

क्योंकि हर कंपनी चाहती हैं कि उसे ज्यादा से ज्यादा स्पेक्ट्रम का हिस्सा मिले, ताकि वो ज्यादा लोगों को अपनी सर्विस प्रोवाइड कर सके। लेकिन यह एक नेचुरल रिसोर्सेज हैं। जिसका पूरा का पूरा कंट्रोल गवर्नमेंट के हाथ में है। अगर हम इंडिया की टेलीकॉम हिस्ट्री पर नजर डाले तो आपको जानकर हैरानी होगी कि बहुत ही कम समय में हमने एक लम्बी दूरी तय की हैं। पीछे जाकर देखें तो हमारे पूर्वज कम्युनिकेशन के लिए तार का यूज किया करते थे। जिसे टेलीग्राफ कहा जाता है। और इस सर्विस की शुरुवात इंडिया के अंदर 1854 में हुई थी। 

साल 1882 के दौरान कोलकाता के अंदर फर्स्ट टेलीफोन Exchange इस्टाबलिश किया गया, जिसे तब एक बहुत बड़े रिवोलूशन के तौर पर देखा गया था। क्योकि इसकी वजह से इंफॉर्मेशन पहुचाने का लंबा प्रोसेस अब मिन्टो में कंप्लीट होने लगा था। लेकिन उस दौर में आम आदमी के लिए टेलीफोन का कनेक्शन पाना इतना आसान नहीं होता था। आज जहां एक घर में कई सारे स्मार्ट फोन्स मौजूद हैं। वहीं उस दौर में गिने चुने लोगों के घर में ही टेलीफोन हो हुआ करते थे। उस समय बाकी के देशों में टेलीफोन तो वाइडली यूज हो रहा था, लेकिन इंडिया में ये इतनी तेजी से नहीं फैल पाया। जिसकी वजह ये थी कि टेलीफोन सर्विसेज कॉम्प्लिटली ब्रिटिश गवर्नमेंट के हाथो में थी।
  
और अंग्रेज नहीं चाहते थे कि इंडियंस टेलीफोन का यूज करें। क्योंकि इस कम्यूनिकेशन का यूज अंग्रेजों के अगेंस्ट भी हो सकता था। इसलिए तब टेलीफोन का कनेक्शन गवर्नमेंट ऑफिशियल्स कुछ खास इंडिविजुअल को ही दिया जाता था। कुछ समय बाद टेलीफोन सर्विस मुंबई, चेन्नई और दिल्ली जैसे बढ़े शहरों में एक्सपेंड होने लगी। जब ब्रिटिसर्स से देश को आजादी मिली तब टेलीफोन का पूरा कंट्रोल इंडियन गवर्नमेंट के हाथों में आ गया। इसलिए अब लाइन बिछाना हो या कनेक्शन देना हो ये सब गवर्नमेंट पर ही डिपेंड करता था। हालांकि कनेक्शन के लिए लाखो लोग अप्लाई करते थे, लेकिन ये प्रोसेस इतना स्लो था कि कभी -कभी उनका वेटिंग टाइम आठ से दस साल के पार चला जाता था।


और इसीलिए उस समय हर 200 लोगो में सिर्फ 1के पास ही टेलीफोन कनेक्शन होता था। लेकिन 1990 के दौरान Economic liberalization होने के बाद इस सेक्टर को प्राइवेट कंपनीज एंटर करने लगी। यही वह समय था समय था जब इंडिया में मोबाइल फोन यूज होना शुरू हुआ। जिसके Potential और ग्रोथ को देख कर बहुत सारी कंपनी इस सेक्टर में कूदना चाही। इस इंट्रेस्ट को देखते हुए साल 1995 में ऑक्शन के जरिये इन कंपनीज को टेलिकॉम सर्विस रन करने का लाइसेंस बेचा गया। जिसमें बहुत सारी प्राइवेट कंपनीज ने हिस्सा लिया था। उस समय के रूल्स के अकॉर्डिंग उन्हे लाइसेंस और स्पेक्ट्रम फीस पहले ही चुकानी पड़ती थी। 

अब उन कंपनीज ने फीस देकर सर्विसेंस देना तो शुरू कर दिया था। लेकिन जिस उम्मीद के साथ उन्होंने इस सेक्टर में एंटर किया था। उस पर पूरी तरह से पानी फिर गया क्योंकि उन्हें वैसी ग्रोथ नहीं मिल पाई जो उन्होंने एक्सपैक्ट की थी। कंपनीज लॉस में जाने लगी और उनके लिए उस फीस को निकालना भी मुश्किल हो गया। जिसे उन्होंने लाइसेंस या स्पेक्ट्रम राइट के नाम पर गवर्नमेंट को पे किया था। इसके चलते उन कंपनीज ने इस नियम का विरोध करना शुरू कर दिया। और आखिरकार लम्बी लडाई के बाद गवर्नमेंट ने इस रूल को बदल कर एक दूसरा रूल बनाया, जिसमें अब कंपनीज से पहले ही लाइसेंस फीस ना लेकर गवर्नमेंट उनके टोटल रेवेन्यूूूु का annually 8% चार्ज करेगी। 

इस नए नियम ने कंपनीज के लिए चीजे काफी आसान कर दी अब उन्हें एक बार में मोटी रकम ना चुका कर हर साल थोड़ा थोड़ा पे करना था। जिसे इनके ग्रोथ पर इसका नेगेटिव इंपैक्ट नहीं पड़ा और इन्हीं कंपनीज की वजह से इंडियन सेक्टर में एक बहुत बढ़ा रिवोलूशन आया। क्योकि अब मोबाईल फोन और सिमकार्ड खरीदना काफी आसान हो गया।अब ज्यादा लोगो तक सर्विस प्रोवाइड करने के लिए बहुत सारे टावर्स और infrastructure की जरूरत थी। इसके लिए कई बड़ी कंपनीज एक साथ मिलकर काम करने लगी। infrastructure को डेवलप करने के लिए फंड्स को आपस में शेयर किया जाने लगा। और कई कंपनीज ने तो सेम टावर से ही अपनी सर्विसेस प्रोवाइड करना शुरू कर दिया था। 

इसके अलावा, साल 2000 के बाद, गवर्नमेंट ने मोबाईल फोन पर Imoprt Duty भी काफी कम कर दी, जिस वजह से Samsung, Nokia, Huawei और Mi जैसी कई फॉरेंग कंपनीज इंडिया की तरफ अट्रैक्ट हुई। ये कंपनीज अपने बेहतरीन मार्केटिंग स्‍ट्रैटजी और अफोर्डेबल प्राइस की वजह से जल्द ही लोगों के बीच काफी पॉपुलर होने लगी। और इनके साथ एक और चीज बढ़ी वो थी मार्केट कॉम्पिटिशन अब इस कॉम्पिटिशन में टेलिकॉम कंपनीज अपनी -अपनी पोजिशन सिक्योर करने में लगी होई थी। तभी 2010 में कुछ ऐसा हुआ कि इनमें से कई कंपनीज के लाइसेंस छीन लिये गए। जी हां ये वही साल था जब 2G स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया। 


असल में उस समय के डिपार्टमेंट टेलीकम्युनिकेशन मिनिस्टर ने स्पेक्ट्रम की निलामी की बजाय, पहले आओ और पहले पावो जैसी पॉल्सी पर लाइसेंस दे दिया। वो भी बहुत ही जादा कम कीमत पर जिस वजह से सरकारी खजाने को लगभग 1 लाख 76 हजार करोड रूपए का नुकसान हुआ था। इस घोटाले के चलते 122 टेलीकॉम कंपनीज का लाइसेंस कैंसिल कर दिया गया। और रिलायंस सहित कई कंपनीज पर मुकदमा चला। इस स्कैम के होने के बाद Videocon, एयरटेल, वोड़ाफोन, आइडिया और Virjin mobile जैसी बड़ी कंपनीज अब मार्केट को रोल कर रही थी। लेकिन इनकी ये बादशाहत लंबे समय तक कायम नहीं रह सकी। क्योंकि साल 2016 में जियो ने मार्केट में एंट्री लेली, और इसके आते ही टेलिकॉम सेक्टर की परिभाशा पूरी तरह से बदल गई। 

दरसल जियो के आने से पहले बाकी की कंपनीज के बीच एक बहुत ही तगड़ा कंपटीशन चल लहा था। ये कंपनीज एक दुसरे से आगे निकलने और ज्यादा स्पेक्ट्रम को खरीदने के लिए आॉक्सन में इतने बड़े अमाउंट का बोली लगा देते थे, जिसे वो अफोर्ड ही नहीं कर सकते थे। साथ ही लाइसेंस फि के नाम पर इन्हें गवर्नमेंट को अलग से मोटी रकम चुकानी पड़ती थी। इस वजह से कई कंपनीज भारी लॉस में चली गए। और उन्ही लॉसेस को रिकवर करने के लिए वो कस्टमर से हाई कॉस्ट चार्ज करने लगी। आपको याद होगा, जियो के आने से पहले सिर्फ 1GB इंटेनेट के लिए ये कंपनीज हम से 250 से 350 रूपय तक चार्ज करती थी। लेकिन जब जियो के एंट्री होई तो इसने यूजर से ज्यादा इन कंपनीज को हैरान किया। क्योकि जिस call या internet pack के नाम पर ये customer से भारी भरकम रकम ले रही थी। 

उन सभी services को जियो ने free कर दिया। इसका असर ये हुआ कि लोग दूसरी companies को छोडकर जियो की तरफ फीज कर गए। और एक महिने के अंदर ही इसके 1 .6 करोड़ से भी जादा subscribers हो गए। इसके बाद इसने अपने free services को बंद करके रिचार्ज plan लॉन्च किया। जो market के दूसरे players से कई गुणा सस्ते थे। इसका impact ये हुआ कि उन जगहों तक भी internet services पहुंचने लगी, जहां पर लोग इससे पूरी तरह अंजान थे। तभी तो जियो के launch होने से पहले जहां हर Indian customer एक month में on an average सिर्फ 154 MB data का use करता था। वो करीब 100 गुणा बढ़कर अप 15 .8GB पर month हो गया है। 

इस तरह जियो customers के जिंदगी में तो revolution लाया, लेकिन बाकी की telecom companies के लिए ये एक बहुत बड़ी मुसिबत बन गया।इसका असर यह हुआ कि उन्हे भी अपना price कम करना पड़ा। मगर ऐसा करके कई सारी companies इस competition में सर्ववाइल नहीं कर पाईं। जैसे Aircel, Docomo और Reliance ऐसी छोटी companies को bankruptcy फाइल करनी पड़ी। और दो बड़ी companies Vodafone और Idea एक -दुसरे से merge होकर V.I. बन गए। इस तरह टेलीकॉम मार्केट में अब केवल चार प्लेयर बचे थे, जो थे Airtel, V.I., जिओ और BSNL अब बात एयरटेल की हो या फिर V.I. की ये अपनी सर्विसेज तो रन कर रहे हैं। लेकिन यह बहुत ही बड़े फाइनेंशियल प्रेशर में है। 


और इसकी वजह है 1999 में लाया गया गवर्नमेंट का वो rule जिसके तहत इन telecom companies को अपने revenue का 8 % share गवर्नमेंट को देना होता है। लेकिन जब से इस rule को बनाया गया है तब से गवर्नमेंट और companies के बीच ये एक विवाद का मुद्धा रहा है। असल में ये amount कंपनी के AGR यानी adjusted gross revenue के base पर लिया जाता है। जिसमें telecom services और non -telecom services दोनों का revenue शामिल होता है। अब telecom services में voice, internet, data, wireless और broadband जैसी चीजे आती हैं। वही non -telecom services में interest, property, seal और rent सामिल है। 

इन companies का कहना है, कि वो सिर्फ telecom services से generate होने वाले earnings पर ही 8 % license fee पे करेंगे। और अभी तक इन्होंने पिछले 14 सालो से इसी के according ही fee को pay किया है। इस चीज को लेकर काफी विवाद चला। जिसके बात court ने फैसला किया कि companies सिर्फ telecom services के according ही fee को pay करेंगे। लेकिन इससे government खुश नहीं थी। और उसने high court का दरवाजा खटखटाया। High Court ने कहां कि कंपनीज को पहले से ही डिसाइड किए गए rules के according license fee को pay करना होगा। यानिकि telecom services और non telecom services को मिला कर उसका total 8 % देना होगा। 

साथ ही high court ने ये भी कहा कि उन्हें सरकार को वो बची हुई fees इंट्रेश्ट के साथ pay करनी होगी। जो उन्हें पिछले काई सालों से नहीं दिया है। और अपनी मनमानी के चलते इन्हें भारी penalty भी चुकानी होगी। अब पहले से ही भारी loss में डूबी इन companies के लिए high court का ये फैसला मरते को दो लात और पड़ने जैसा है। जियो ने क्योंकि 2016 में enter किया था इसलिए इसको सबसे कम रकम देनी थी। इंफैक्ट ये अपने हिस्से का रकम दे भी चूका है। लेकिन V.I. कोर्ट का दरवाजा खट्कटाता रहा और ये गूहार लगाता रहा कि उसे थोड़ा समय दिया जाए। लेकिन फरवरी 2023 में गवर्नमेंट ने 16133 करोड रुपए के बदले V.I. के 33 % शेयर्स अपने नाम कर लिए। और इस ज्वाइंट वेंचर में सबसे बड़ी शेयर होल्डर बन गई। अब इंडियन टेलीकॉम सेक्टर की बात करें तो इसमें BSNL गवर्नमेंट की ही कंपनी है। 

वही V.I. में भी सरकार की बड़ी हिस्सेदारी हो चूकी है। साथी इसका मार्केट प्रेजेंस भी उतना स्ट्रॉन्ग नहीं है। ऐसे में कह सकते हैं, कि ये पूरा सेक्टर सिर्फ दो प्राइवेट कम्पनींज के कंधो पर टिका है। जिसमें पहला है जियो और दूसरा एयरटेल इन दोनो कम्पनींज पूरे टेलीकॉम सेक्टर के लिए एक खतरा बन सकती है। क्योंकि धीरे धीरे कंपटीशन खतम होता जा रहा है। और पूरी बागडौर इन्ही दोनो कम्पनींज के हाथो में आ गए है। फिलहाल अगर हम लाइसेंस फी, स्पेक्ट्रम या टैक्सेस के बात करें तो इन कम्पनींज को अपना 58 % रेवेन्यू गवर्नमेंट को देना पड़ता है। यानी हर 100 रूपय की अर्निंग पर इनके पास 48 रूपय ही बचते हैं। 

जिसमें अपरेशनल कॉस्ट और इस तरह के कई सारे खर्चे included हैं। इस सब के चलते कम्पनींज के पास प्रोफिट के नाम पर कुछ खास नहीं बच पाता लेकिन जब इस सेक्टर में यहीं दो कम्पनींज होंगी, तो ये अपनी मर्जी से जितनी चाहें रीचार्ज के प्राइस को बढ़ा सकती है। जो कंजुमर्स के लिए आने वाले फ्यूचर में बहुत ही बड़ी प्रोब्लम क्रिएट कर सकता है। ऐसे में गवर्नमेंट को चाहिए कि वो अपनी पॉल्सीज और अपने रूल्स में बदलाव करके टैक्स की वसूली को कम करे। ताकि इस सेक्टर में नए प्लेयर्स एंटर कर सकें। और कंपनीज के बीच एक हेल्थी कंपटीशन बना रहे। क्योंकि एक या दो कंपनीज की मोनो पॉली किसी भी सेक्टर में अच्छी नहीं होती है। वैसे दोस्तों आपका इस लेख के बारे में क्या कहना है हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

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